जिला एवं क्षेत्र पंचायत सदस्यों के शांतिपूर्ण चुनाव होने के हफ्ते भर बाद उत्तर प्रदेश राज्य चुनाव आयोग ने ग्राम प्रधानों के 58909 और सदस्यों के सात लाख से अधिक पदों के चुनाव के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। उत्तर प्रदेश के गाँवों में ग्राम प्रधान और सदस्य चुनाव की सरगर्मी बढ़ने लगी है। गाँव-घर की राजनीति को चूल्हे तक प्रभावित करने वाला यह चुनाव लोकतंत्र में हार जीत के हिसाब से सबसे कठिन माना जाता है। क्योंकि प्रत्याशी के अच्छे बुरे आचार व्यवहार कर्म से मतदाता पूरी तरह वाफिक रहता है। यह चुनाव सिर्फ और सिर्फ प्रत्याशी की छवि पर लडा जाता है। इस चुनाव में किसी भी पार्टी या बड़े नेता की कोई ज्यादा भूमिका नहीं होती।
जो ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत सदस्य पदों के प्रत्याशी थे वो जिला एवं क्षेत्र पंचायत चुनावों के समय से ही अपने चुनाव की तैयारियों में पानी की तरह काफी पैसा बहा चुके हैं। और तब से ही चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशी लोगों में शराब, पैसा और सामन बाँट रहे हैं। पैसा व शराब से चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश हो रही है। जिला एवं क्षेत्र पंचायत से लेकर प्रधान और ग्राम पंचायत सदस्य तक के चुनावों में मतदाताओं को रिझाने के लिए पैसा व शराब का उपयोग किया जा रहा है। गरीब मतदाता भी चुनाव भर उम्मीदवारों को उम्मीद भरी निगाहों से देखते रहते हैं। ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत के चुनाव में सामथ्र्यवान प्रत्याशियों द्वारा जमकर पैसा व शराब बांटी जा रही है, क्योंकि इस चुनाव में एक-एक वोट बेहद महत्वपूर्ण है। कमोबेश प्रदेश के हर गांव में चुनाव में पैसों का खेल चल रहा है।
कहीं प्रत्याशी तो जीतने के लिए मतदान से पहले ही गाँव में मंदिर निर्माण, सड़क निर्माण, स्कूल निर्माण और हैंडपंप इत्यादि के लिए पैसे दे रहे हैं। इसके साथ-साथ प्रत्याशी बैनर और पर्चों के लिए हजारों रूपये खर्च कर चुके हैं। कोई भी प्रत्याशी अपने आप को चमकाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहता। गांवों में दिन भर प्रत्याशियों के घर के बाहर ग्रामीण दस्तक देते हुए नजर आ जायेंगे। दिन में पैसा रात में शराब से प्रत्याशी मतदाताओं को ललचा रहे हैं और अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं।
पहले सांसदी और विधायकी के चुनावों में उम्मीदवारों द्वारा अपने प्रचार प्रसार के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जाता था। लेकिन अब प्रदेश में ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत सदस्य चुनाव में उम्मीदवारों द्वारा खूब प्रचार किया जा रहा है। स्वाभाविक है कि प्रचार के दौरान पैसे भी खर्च हो ही रहे हैं। और ये खर्च लाखों में पहंुच रहा है। कई उम्मीदवार तो इतना ज्यादा खर्च कर देते हैं कि उनका दिवाला तक निकल जाता है। इनमे से कई उम्मीदवार ऐसे हैं जो प्रधान बनने के लिए अपनी जमीन-जायदाद तक गिरवी रख चुके हैं, बेशक हार मिले या जीत लेकिन खर्च करने में प्रत्याशी कोई कमी नहीं छोडना चाहते। अगर कमी छोड़ दी तो दुसरे प्रत्याशी का पलड़ा भारी न हो जाए एक ये भी चिंता सताए जा रही है।
कई गाँवों में तो ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत चुनाव को लेकर प्रत्याशी गुटों में टकराव भी शुरू हो चुके हैं। ये टकराव इस हद तक बढ जाते हैं की रंजिश का रूप ले लेते हैं। और कई जगह तो खून-खराबा का कारण भी बन जाते हैं। और कई गांवों में रसूखदार और सामर्थ्यवान प्रत्याशियों द्वारा दूसरे कमजोर प्रत्याशियों को खरीदना शुरू हो गया है। जिससे की उनका वोट भी उनके पाले में मिल जाए।
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लेखक : ब्रह्मानंद राजपूत, आगरा |
प्रदेश में ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत चुनाव में चंद दिन बचे हैं। लेकिन यही चंद दिन ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत सदस्य चुनाव के लिए निर्णायक साबित होने वाले हैं। इसी दौरान प्रत्याशी आचार संहिता को ताख पर रखकर शराब, शबाब और उपहार बांटकर मतदाताओं को लुभाते हैं। इसका नजारा भी दिखना शुरू हो गया है। अब प्रषासन को ये देखना चाहिए कि चुनाव प्रचार के दौरान प्रलोभन देने वाले प्रत्याशियों और चुनाव खर्च से ज्यादा खर्च करने वाले प्रत्याशियों पर कैसे लगाम लगाई जाए। शराब, शबाब और पैसे के खेल पर कैसे रोक लगाई जाए यह प्रशासन के लिए सबसे बडी चुनौती है।