है अगर वो चिडिया....
तो पंख फैलाना वो जानती है।
आसामान हो चाहे दूर कितना...
वो धरती से आसमान तक की दूरी भी...
मापना जानती है।
कौन कहता है ????
कि बेटियों के घर नहीं होते,
एक घर को दूसरे घर से जोड़ा है
उफ तक न की उसने कभी...
जब भी अपनों ने मुह मोडा है।
है कौन उनके जैसा साहसी????
जो अपनों से हार कर भी ...
खुशी मनाती है,
खुद रो लेती है...
औऱ हँसाती हैं।
उनके बिना कोई घर ....
घर नहीं होता,
सही मानो तो...
बेटियां ही घर बनाती हैं।
रेखा गौतम 'राही'
कानपुर, उप्र
अगर आप भी चाहते है 'कलम से' कॉलम मे अपनी कविताये, हास्य व्यंग या कोई लेख तो आप biggpages@gmail.com पर भेज सकते है|