कहाँ से आये कहाँ को जाये
नदिया तू कुछ समझ न आये
रूप तेरा ऐसा जैसे मन मेरा
ओर-छोर कुछ नप न पाये ।
जीवन तू देती हम सबको
हम तुझको क्या दे पाते हैं
तेरे घाटों पर पलता जीवन
मोक्ष भी यहाँ पा जाता है ।
उतरी चली, चलती ही आई
राह कहीं विश्राम न पाई
ऊँचे-ऊँचे शिखर लाँघ कर
सारी धरती नाप तू आई ।
मानव को पाला सदियों से
सभ्यताओं की जननी है तू
गंगा,जमुना,सिंधु,,सरस्वती
बसा हमारा ह्रदय इन सबमें ।
नदिया तेरे कितने रूप !
-डॉ. गीता यादवेन्दु,
प्रोफेसर आगरा कॉलेज
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