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सोमवार विशेष : नदिया तेरे कितने रूप...


कहाँ से आये कहाँ को जाये
नदिया तू कुछ समझ न आये
रूप तेरा ऐसा जैसे मन मेरा
ओर-छोर कुछ नप न पाये ।

जीवन तू देती हम सबको
हम तुझको क्या दे पाते हैं
तेरे घाटों पर पलता जीवन
मोक्ष भी यहाँ पा जाता है ।

उतरी चली, चलती  ही आई
राह कहीं विश्राम न पाई
ऊँचे-ऊँचे शिखर लाँघ कर
सारी धरती नाप तू आई ।

मानव को पाला सदियों से
सभ्यताओं की जननी है तू
गंगा,जमुना,सिंधु,,सरस्वती
बसा हमारा ह्रदय इन सबमें ।

नदिया तेरे कितने रूप !

 -डॉ. गीता यादवेन्दु,
 प्रोफेसर आगरा कॉलेज

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