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गोरे रंग के लोगों को होती है त्वचा की अधिक देखभाल की जरूरत


 गोरे रंग पे न इतना गुमान कर... गाने का वैज्ञानिक पहलू भी है। इस गाने की रचना के समय शायद वैज्ञानिक पहलू को भी ध्यान रखा गया होगा। गोरा रंग तो दिन में ढ़ल जाएगा... इस बात को डॉक्टर्स भी स्वीकार करते हैं। सूरज की रोशनी में जहां गोरे रंग को स्वस्थ और सुरक्षित रखने के लिए अपेक्षाकृत अधिक जरूरत होती है, वहीं स्वास्थ्य की दृष्टि से गोरा रंग होने के कई नुकसान भी हैं। यूरोपीय देशों के लोगों का गोरा रंग ही जो उनके लिए सूरज की रोशनी में त्वचा कैंसर के खतरे को बढ़ा देता है। 
      आगरा के डॉ. राहुल सहाय ने बताया कि त्वचा में कोशिका में मौजूद मैलेनिन दिन की रोशनी में अल्ट्रावॉयलेट किरणों से रिएक्ट करके व्यक्ति के रंग को गहरा कर देता है। जो एक सुरक्षा कवच के रूप में काम करता है। वहीं दिल्ली के डॉ. लोकेश कुमार कहते हैं कि त्वचा के पांच प्रकार हैं। स्टेप एक से लेकर पांच तक। पहले और दूसरे स्टेप की त्वचा में मैलेनिन बहुत कम होता है। इस तरह की त्वचा ठंडे देशों (युरोपीय देशों) में मिलती है। तीसरे और चौथे स्टेप की त्वचा में अपेक्षाकृत अधिक मैलेनिन होता है। इस तरह की त्वचा एशियन कंट्री के लोगों में होती है। पांचवी स्टेप की त्वचा अफ्रीकन कंट्री के लोगों की होती है, जिनमें मैलेनिन बहुत अधिक होता है। अधिक मैलेनिन के कारण ही अफ्रीकन लोगों का रंग भी अधिक काला होता है। बेशक वह खूबसूरत न दिखें, कोले रंग के कारण कैंसर व सूरज से त्वचा को होने वाले नुकसान से सुरक्षित होते हैं। 
      अब वैज्ञानिक दृष्टि से रंग पर बात करें तो जिस त्वचा में मैलेनिन कम होता है, उनकी त्वचा सूर्य की रोशनी में जल जाती है। यानि उन्हें मैलेनिन के कारण अपी त्वचा के लिए यूरज की रोशनी में सुरक्षा कवच नहीं मिल पाता। त्वचा के कोशिका जलने से डीएनए प्रभावित होता है। यही वजह है कि यूरोपीयन कंट्री के लोगों में त्वचा कैंसर के मामले अधिक होते हैं। जबकि एशियन कंट्री के लोगों में मैलेनिन अपेक्षाकृत अधिक होने की वजह से सूरज की रोशनी में उनकी त्वचा की कोशिका नष्ट होने के बजाय टेनिन (त्वचा का रंग काला हो जाना) के मामले अधिक होते हैं। इसलिए डॉक्टर सलाह देते हैं कि जिन लोगों का रंग गोरा है, उन्हें धूप में बिना सनस्क्रीन के नहीं निकलना चाहिए। अपेक्षाकृत उन्हें उपनी त्वचा की देखबाल की अधिक जरूरत पड़ती है।