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दलित आंदोलन से फायदा किसको?

अमिता शुक्ला, चंडीगढ़
एससी/एसटी एक्ट से सबसे ज्यादा पीड़ित यादव, जाट, राजपूत और अन्य पिछड़ी जातियां। अगर दलितों से इनका विवाद बढ़े तो इन जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले दलों में गठजोड़ के बाद भी वोट बैंक ट्रांसफर नहीं होगा। समाजवादी पार्टी यादवों सहित उच्च पिछड़े वर्ग और क्षत्रियों का प्रतिनिधित्व करती है। इसी तरह राष्ट्रीय लोकदल जाटों और पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। कांग्रेस के समर्थक कुछ सवर्ण, कुछ मुस्लिम और कुछ अन्य वर्गों से हैं। बसपा दलितों और निम्न पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। अब अगर दलितों से इन सभी बिरादरियों में विद्वेष उत्पन्न हो जाये तो इनका गठजोड़ फेल हो जाएगा और जिस फायदे की उम्मीद यह गठजोड़ कर रहा था वह धरा रह जाएगा। दलित वर्ग यादव-राजपूत या उच्च पिछड़े वर्ग के प्रत्याशी को वोट नहीं देगा और दलित प्रत्याशी को इस वर्ग के लोग वोट नहीं देंगे। सवर्ण वर्ग से पहले ही उम्मीदें नगण्य हैं।

आंदोलन के दौरान सत्तारूढ़ दल की सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। देश प्रदेश सुलगता रहा और अफसर भी मौज लेते रहे। मुख्य सचिव से लेकर डीजीपी तक और एडीजीपी से लेकर एसएसपी तक आंदोलन के उग्र होने तक मस्ती में बैठे रहे। रेलवे ट्रैक पर 8 से 12 घंटे तक आंदोलनकारियों का कब्जा रहा मगर उनके खिलाफ कोई सख्ती नहीं की गई। कुछ अराजक तत्वों ने जब हिंसक बलवा किया तब भी पुलिस की कार्रवाई बड़ी हल्की रही जबकि आंदोलन निपटने के बाद इंटरनेट भी बंद किये गये और स्कूल भी। जब आंदोलन उग्र हुआ तब कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया। तो क्या सरकार उग्र आंदोलन को हवा दे रही थी।

सपा-बसपा-रालोद और कांग्रेस के गठबंधन में जातिगत दरार बड़ जाये तो फायदा किसको है और अगर यह सभी जातियां एकजुट हो जायें तो नुकसान किसको है ?