आगरा| भवर, लपक-झपक
भाईसाहब! मुद्दा भवर मे फंसा है न कोई लपक पा रहा है न झपक पा रहा है| कहने को तो पूरा मामला शिक्षा के मंदिर से जुड़ा है पर इस मंदिर मे भगवान से फरियादी के मिलने के बीच मे कई पेच आ गए है| ज्यादा आपको बोर न करते हुए मुद्दे पर सीधे से आते है| आगरा मे शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के तहत दलित व गरीब बच्चो को उनके हक़ से उन्हे वंचित रखा जा रहा है और ये शिक्षा माफ़ियों व शिक्षा अधिकारियों की मिलीभगत से हो रहा है|
शिक्षा का अधिकार अधिनियम
अब आपको बताते है कि क्या है शिक्षा का अधिकार अधिनियम(2009) की धारा 12(1)(ग) के अन्तर्गत देशभर के सभी प्राईवेट स्कूलो मे 25%सीट आरक्षित होती है| जिसमे से निम्नलिखित मे से कोई एक मानक को पूरा करता हो...
1.अनुसूचित जाति,
2.अनुसूचित जनजाति,
3.अन्य पिछड़ा वर्ग,
4.सामान्य जाति के गरीब छात्र /छात्रों (जिनके परिवार की आय 1 लाख रुपये वार्षिक से कम हो)
5.विकलांग माता पिता/विधवा/निराश्रित
6.HIV पीडि़त के लिए
शिक्षा पर है सब का अधिकार
दोस्तो, शिक्षा पाना कौन नहीं चाहता है और शिक्षा ग्रहण करना हमारा हक़ भी है इसीलिए सरकार द्वारा तमाम योजनाओ के तहत करोड़ो रुपये खर्च भी किए जाते है| इसी क्रम मे शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के दलित व गरीब बच्चो को कान्वेंट स्कूलो मे दाखिला देने की प्रक्रिया हर वर्ष सरकार द्वारा की जाती है जिसमे लौटरी सिस्टम के तहत बच्चो को प्रवेश दिया जाता है|
आपको बता दे, कहानी यहाँ समाप्त नहीं होती है स्कूल एलोट होने के बाद कान्वेंट स्कूल के महीनो चक्कर लगा-लगा कर दलित व गरीब बच्चे थक जाते है परंतु स्कूल संचालक किसी न किसी बात का बहाना दे कर उन्हे टलता रहता है और कुछ समय बाद परेशान अभिवावक अपने बच्चे को कान्वेंट स्कूल मे पढ़ाने के सपने को भूल कर जाना बंद कर देता है| इसकी अलख जगाने और सोये सरकारी तंत्र की निंद्रा तोड़ने के लिए आगरा से आर०टी०ई० एक्टिविस्ट धनवान गुप्ता ने आगरा के जिलाधिकारी गौरव दयाल के राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग से सम्मन तक कटवा दिये थे यही नहीं उसके बाद अपने खून से राष्ट्रपति को पत्र भी लिख चुके है| वो आज भी निरंतर बच्चो के हक़ की लड़ाई लम्बे समय से लड़ रहे है| फिर भी कोई सुधार होता नहीं दिख रहा है क्योकि शिक्षा विभाग और स्कूल माफिया का मजबूत तंत्र है जो शासनादेश का उल्लंघन एंव आदेशो की आवेलना मानते हुए मान्यता समाप्त की संस्तुति खंड शिक्षा अधिकारी नगर क्षेत्र द्वारा उच्चाधिकारियों कर दी जाती है और बाद मे फाइलों से संस्तुति पत्र गायब हो जाते है|