प्रकृति क़ुदरत की अनुपम धरोहर है ।
प्रकृति माँ की ममता का सरोवर है ।
बहती मंदाकिनी जिसके आँचल में
प्रकृति की सौग़ात फूल गुलमोहर है ।
पर्यावरण ने बिखेरा ख़ुशियों का हाला
हिम की चादर कहीं बहती निर्झर धारा
काटकर ,रौंदकर दे दिया विष प्याला
निष्ठुर मानव तूने क्या अनर्थ कर डाला ।
मत कर खिलवाड़ तू प्रकृति से मानव
मत बन अपनी ख़ुशियों का तू दानव
कर ले प्रकृति से थोड़ा -सा प्यार
सुख साधन देगी अपार वो मानव ।।
✍ पूजा आहूजा कालरा
आगरा, उ०प्र०
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