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याद आ रहा है आज अपना घर हमें...

गज़ल

याद आ रहा  है आज अपना घर हमें
भेज दिया था पढ़ने को दूर शहर हमें।

ए-शहर कुछ दिनों के लिए गावँ भेज दे
झरना,तालाब याद आ रहे खँडहर हमें।

कुछ  महीने, एक  बरष बीत गया इधर
अब तय करना है जिंदगी का सफ़र हमें।

माँ  की आँखों  के अब आँसू  सूख गये
रो-रो कर याद करती रही उम्र भर हमें।

हमें क्या खबर हम इतना बदल जाएंगे
जिंदगी ने भटका दिया इधर-उधर हमें।

दुनियां भी कैसी  आँख मिचौनी खेलती
झूठी तसल्ली देती रही हर मोड़ पर हमें।

काश फिर से वो दिन लौट कर आ जाएं
लगता है लग गयी किसी की नज़र हमें।

✍ सुमन अग्रवाल, आगरा



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