तेरे जाने के बाद
खूंटी पर टंगे हुए
कपड़े तेरे उनसे आती
बदन की खुश्बू
दूर नहीं तू मुझसे
कुछ ऐसा लगता है
बिखरा हुआ सामान तेरा
कुछ टूटे हुए खिलौने
जो संजों कर रखे है मैंने
उनमे नन्हे हाथो का है स्पर्श तेरा
छूने से धड़कता दिल है मेरा
तेरी साफ अलमारी को
फिर से साफ कर दिया करते
उसमे जमा हैं बचपन की यादें तेरी
कहीं कह न दो तुम
इतनी धूल जमी है मां
सब पर हाथ फेरकर
मन को धैर्य बंधाया करते
दोपहर कमरे का दरवाजा
खोल दिया करते हम
बाहर तुम बेसब्र-सी खड़ी हो
झूठे ही तेरे कदमों की आहट का
भ्रम मान लिया करतें हम
कमरे मे तेरे होने का
अहसास पा लिया करते
पुकारा है मम्मी झूठे ही मुड़कर
खुद को हां कह लिया करते हम
आस -पास ही हो कही,
मान लिया करते है हम
पास मेरे तुम लेटी हो सोच लिया करते
मन की गांठें खोल दिया करते
खूद से ही बात कर लिया करते
बेटी है पराई यह सोच लिया करते
तुम्हारे जाने के बाद...
रचना सिंह 'रश्मि'
कवियित्री साहित्यकार
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