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महाराणा प्रताप की कहानी... आओ जाने

आनन्द मोहन शुक्ल, दिल्ली 


महाराणा प्रताप मेवाड़ के राजा थे इस समय यह जगह राजस्थान में है ! प्रताप राजपूतों में  सिसौदिया वंशज के वंश थे और सभी राजपूतों के राजा उन्हें अपना आदर्श मानते थे ! महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को मेवाड़ में हुआ था ! प्रताप उदयपुर के राजा राणा उदय सिंह और महारानी जयवंता बाई के पुत्र थे ! राणा उदय सिंह और पत्नियां थी जिनमें से उनकी प्रिय पत्नी का रानी धीर बाई थी ! रानी धीर बाई के  एक पुत्र था जिसका नाम कुँवर जगमाल था, वह चाहती थी कि उनका पुत्र ही राजा बने लेकिन राजा और प्रजा दोनो यही चाहते थे कि प्रताप ही राजा बने ! राजा के पत्नी के 2 पुत्र थे, एक कुँवर शक्ति सिंह और सागर सिंह थे !  यही कारण था कि घर मे फूट होने की वजह से बादशाह अकबर चित्तौड़ पर कब्जा कर लिया था और वह यही चाहता था कि प्रताप को हराकर अपना नाम पूरे परचम में लहराए ! 

जब अकबर ने एक बार चित्तौड़ पर आक्रमण किया और महाराणा प्रताप ने करारा जबाब दिया और वहाँ पर मुगलों को मुहकी खानी पड़ी तब अकबर ने सोचा कि ऐसे चित्तौड़ पर विजयी नही पाई जा सकती , तब उन्होंने बहुत से राजपूतों को अपने खेमें में मिलाया जो राजा आसानी से आ गए और जो नही आये उन्हें युद्ध के धमकी से अपने खेमे में कर लिया ! राजा मान सिंह को अपने सेनाओं का सेनापति बनाया और कुँवर भगवान से उन राजाओं में से एक थे ! मुगलों ने चित्तौड़ पर एक बार फिर राजा मान सिंह के नेतृत्व में  आक्रमण किया और युद्ध काफी दिनों तक चला और चित्तौड़ में अनाज और पानी की कमी होने के कारण सभी प्रजा यही सोची की अगर प्रताप जिंदा रहे तो हमारा राज्य बच सकता है और उनके खाने में नींद के दवा मिला दी गयी जिससे उन्हें राज्य के बाहर एक सुरक्षित जगह ले जाया गया और प्रताप के ना होने के कारण मुगलों ने चित्तौड़ पर अपना परचम लहराया ! 

प्रताप ने अपनी परिश्रम से एक नया नगर बसाया और उसका नाम उदयनगर रखा और अपनी प्रजा को बसाया ! 1576 में फिर एक बार मुगलों ने उदयपुर पर आक्रमण कर दिया और वही युद्ध आज हल्दीघाटी के नाम से जाना जाता है ! हल्दीघाटी का युद्ध काफी दिनों तक चला !उनका दोस्त अफगान का हकीम खान सूरी मरते दम तक साथ दिया और काफी दिनों तक बिना खाये पिये लड़ता रहा और दोस्ती का फर्ज अदा किया ! हल्दी घाटी के युद्ध मे प्रताप का साथ भीलों ने बहुत दिया और बड़ी निडरता के साथ लड़ाई लड़ी लेकिन मुगलों के काफी सैनिक होने के कारण एक एक कर सभी भील मारे गए | 

कुँवर शक्ति सिंह भी बाद में प्रताप सिंह का साथ दिए और प्रताप के साथ लड़ाई लड़े ! युद्ध काफी दिनों तक हल्दी घाटी का चलते ही कुँवर जगमाल ने उदयपुर पर आक्रमण कर दिया और तभी प्रताप को अपने नगर और महिलाओं को बचाने के लिए अपने नगर जा रहे थे तो रास्ते मे एक नदी पड़ती है जिसे 21 फीट लंबी छलांग लगाकर चेतक ने पार की , तभी चेतक की वही पर मृत्यु हो गयी ! वहाँ पर सभी रानियां जौहर की आग में जल गई और यह युद्ध प्रताप हार गये ! महाराणा प्रताप 29 जनवरी 1636 को अपना प्राण त्याग दिया ! प्रताप अपने जीते जी कभी भी मुगलों के सामने नही झुके ! यही कारण रहा अकबर खुद ही राजपूतों में केवल प्रताप के कहानी सुनाता था और उनसे डरता था ! आज भी राजपूतों में उनकी मिसाल दी जाती है |