Mirzapur-2 Review : फिल्म में पहले वाली बात नहीं.. जाने क्यों
मुख्य किरदारों की कहानियों में यहां कोई ऐसा रोचक मोड़ नहीं आता कि आप चौंक जाएं। लगभग सभी पुराने सफर पर आगे निकले हैं और उन्हें ऐसे लिखा गया है कि कमोबेश आप जानते हैं, उनकी मंजिल क्या होगी। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर पर बाहुबली अखंडानंद उर्फ कालीन भैया (पंकज त्रिपाठी) का शासन अब भी है और पहली बीवी से हुए बेटे मुन्ना भैया (दिव्येंदु शर्मा) को उनकी कुर्सी चाहिए। उधर कालीन भैया के तैयार किए गुर्गे गुड्डू पंडित (अली फजल) और पुलिस अधिकारी गुप्ता की बेटी गोलू (श्वेता त्रिपाठी शर्मा) क्रमशः अपने भाई और बहन की पिछली सीरीज में की गई हत्या का बदला लेने के मिशन से नई सीरीज में घूम रहे है।
मिर्जापुर के संवाद भले ही कहें कि यह जंगल है, परंतु जंगल की भयावहता और खूंखार जानवरों का डर इस सीजन में गायब है। मिर्जापुर-2 का ही एक संवाद है कि आदमी का डरना जरूरी है, मरना नहीं। लेखक-निर्देशक ने इस बात का ध्यान कहानी में नहीं रखा क्योंकि इस बार किरदार डरते कम हैं, मरते ज्यादा हैं. उस पर गुड्डू-शबनम, रॉबिन-डिंपी की कमजोर प्रेम कहानियां कोई रोमांच पैदा नहीं करतीं। फिल्म भ्रष्टाचार, अपराध, शासन की विफलता, माफिया डॉन्स के शासन और टिटहरी पूर्वी यूपी शहर में गैंग युद्धों के आसपास घूमती है।