आगरा : मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के 100 दिन मे किए जाने वाले कार्य मे शुमार शिक्षा के अधिकार को आगरा मे पूर्णरूप से विफल करने की तैयारी मे जुटे अधिकारी व निजी स्कूल संचालक कोई कसर छोड़ रहे है| पिछले वर्ष भी शिक्षा के अधिकार के लिए सेंकड़ों बच्चे बंचित रह गए| जिसमे आगरा के जिलाधिकारी को 7 मार्च 2017 को राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग द्वारा सम्मन नोटिस जारी हो चुका है| यही नहीं आरटीई एक्टिविस्ट धनवान गुप्ता की मदद से सुप्रीम कोर्ट तक से गुहार लगा चुके है, इसके बाद भी आगरा के जिलाधिकारी द्वारा इसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है और शिक्षा के अधिकार के लिए बच्चे 28 अप्रैल को जिलाधिकारी कार्यालय पर शिकायत दर्ज करायी व पुनः 3 मई को दिवस अधिकारी को अवगत कराया| जब आगरा प्रशासन कुछ न कर सका तो मुख्यमंत्री योगी के प्रथम आगरा दौरे के दौरान 7 मई को उखर्रा बाल्मीकी मोहल्ले मे बच्चो के साथ अभिववकों ने सीएम मुकलाकत कर गुहार भी लगा चुके है उसके 18 दिन बाद भी आज भी बच्चे प्रवेश का महज इंतजार कर रहे है|
एडीएम का आदेश कर रहा भ्रम पैदा
एडीएम राजेश कुमार श्रीवास्तव द्वारा बीएसए को एक पत्र लिख कर बच्चो के फर्जी सर्टिफिकेट की जांच के आदेश दिये| जिसको निजी स्कूल संचालक गरीब बच्चो के अभिववकों को सर्टिफिकेट जांच करने का हवाला दे कर टाल देते है| जबकि सरकारी सिस्टम के तहत सत्यापित होने के बाद ही पात्र बच्चे का चयन कर लाटरी सिस्टम मे शामिल किया जाता है|
सत्यापित दस्तावेजो की निजी स्कूल किस अधिकार से करेंगे जांच
निजी स्कूल नगर निगम व तहसील द्वारा बने सरकारी प्रमाण-पत्रो को शिक्षा विभाग द्वारा सत्यापित करने के बाद किस अधिकार/अधिनियम के तहत जांच करेंगे| जबकि वो पहले से ही सत्यापित होते है| अब निजी स्कूलो द्वारा सत्यापित करने की आढ़ मे बच्चो को प्रवेश न देने का नया तरीका अपनाया जा रहा है ताकि गरीब व दलित बच्चो के साथ हो रहा अन्याय जो कि प्रशासन की मंशा पर भी सवाल खड़ा करता है|
क्या कहते है अभिवावक
रोशन की माँ मधु कुमारी कहना है कि जिलाधिकारी से लेकर सूबे के मुख्यमंत्री योगी तक से मुलाक़ात करने के बाद भी सिर्फ आश्वासन ही मिला| वही दलीप की माँ का कहना है कि इस तरह से बच्चो का प्रतिष्ठित स्कूल मे पढ़ने का सपना पूरा होता नहीं दिख रहा है|
क्या कहते है RTE ACTIVIST
धनवान गुप्ता का कहना है कि शिक्षा का अधिकार सिर्फ कागजो पर ही दौड़ रहा है जबकि वास्तवित हकीकत ये है कि दलित व निर्धन बच्चो को नि:शुल्क एंव अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 का लाभ पाना लोहे के चने चबाने जैसा है|