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छपास समाजसेवियों के मुंह पर जबरदस्त तमाचा है ये दलित युवती... जाने कैसे

गुंजन गोयल, बिग पेजेस, आगरा
समाज का एक सच ये भी
लता अपने बेटे के साथ 
इनसे मिलिए! ये लता हैं और इनकी गोद में इनका दस महीने का बेटा है| इस संवेदनहीन और रूढ़िवादी समाज के चलते यें दर दर ठोकरें खाने को मजबूर हैं| पिछले 5 महीने से यें एमजी रोड पर स्थित टोंरेट के आफिस के बाहर अपने बेटे के साथ सो रहीं हैं| अपने जीवन का अब इन्हें कोई मोह नहीं रहा... दुनिया इन्हें पागल समझती है... कभी ये रेलवे स्टेशन पर अपने बेटे को लेकर सो जाती है कभी फुटपाथ पर.. कोई खाना दे दे तो ठीक नहीं भूखे ही रह लेती हैं और ऐसा ही इनका बेटा भी हो गया| मेरे साथ में बैठे इन्हें चार धंटे हो गए पर इनका बेटा चुपचाप सोया ही रहा| मुझे कुछ आशंका हुई तो ज़बरदस्ती जगा कर उसे जूस या दूध पिलाने कि कोशिश की पर उन्हें समाज में किसी पर भरोसा नहीं रहा है| मैंने जो खाना और जूस मँगवाया उसे उन्होंने पहले मुझे एक घूँट पीने और खाने को कहा तो मैं वैसे ही करती रही जैसे वो कहती रही फिर जाकर माँ बेटे ने पेट भर खाना खाया| यें मेरे पास कोई रोज़ाना तनख़्वाह की नौकरी पूछने आई थी| पूरे तरिके से अंग्रेज़ी में बात कर रहीं थी पर साथ ही कह रहीं थी कि बच्चे को साथ ही रखेंगीं चाहे कोई भी नौकरी हो| दौड़ भाग ही क्यूँ ना हो पर बच्चे को किसी के भरोसे नहीं छोड़ेगी| उनके साथ हुई प्रताड़ना और उत्पीड़न के चलते अब उन्हें अपने साऐ पर भी भरोसा ना रहा| 

कुछ देर और बात हुई तो पता चला कि दुनिया कि नजर में यें दर-दर भटकने वाली पगलिया.. उच्चस्तरिय शिक्षा पाए है और टापर भी है| इतना ही नहीं आगरा मे बैंक ऑफ महाराष्ट्र जैसी सरकारी बैंक में सहायक प्रबंधक भी है पर इनके बैंक वाले इन्हें पागल क़रार कर चुके हैं वो भी बिना किसी प्रमाण के और बच्चे के साथ इन्हें शाखा में घुसने पर पाबन्दी है| इनको प्रताड़ित करने में ना तो इनके बैंक के कर्मियों नें कोई कसर छोड़ी, ना घर वालो नें और ना बेरहम समाज नें..

दरअसल इनके पति से इनके गंधर्व विवाह को ओर उससे हुई औलाद को इनके घर वाले जायज़ नहीं मानते, पिता ने पति पर क़ानूनी मुक़द्दमा डलवा दिया और उन्हें बाहर भागने पर मजबूर करा दिया| 

पिता कहते हैं कि पति को छोड़ो..बैंक वाले कहते हैं बच्चे को छोड़ो...दुखी होकर इन्होंने ही सब छोड दिया
घर वालो की प्रताड़ना से तंग आकर इन्होंने घर त्याग दिया| रूढ़िवादी मानसिकता के चलते नाते रिश्तेदारों नें भी दरवाज़े भेड लिए तो बैंक वालो ने भी इनके सीधेपन के चलते इनका शोषण करने की कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी..रूपये से..शरीर से..भावनाओं से हर तरिके से ये शोषित होती रही| इनका क़सूर बस इतना था कि ये दलित और तलाकशुदा थी(ऐसा इनका मानना है) यही कारण था कि हर किसी ने इन्हें टेढ़ी नज़रों से देखा, पति के लापता होने के बाद घर वालो कि रोज़ रोज़ मार खाने के बाद ये पूरी तरह से विक्षिप्त हो गई ओर घर छोड दिया( घर का पूरा ख़र्च भी सालो से यही उठा रही थी)

मुझसे बोली "घर में सबसे डर लगने लगा था| कब कौन गाली देने लगे हाथ उठाने लगे तो घर की छत छोड मैं नीली छतरी वाले कि शरण में आ गई| यहाँ किसी को किराया नहीं देना पड़ता| यहाँ कोई आपको घड़ी-घड़ी पीटता नहीं हैं|"

मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था| मुझे लगा कि मैं कोई भयानक सपना देख रहीं हूँ पर सपने कि नायिका जीती जागती मेरे सामने बैठी थी| उसने एक आँसू भी ना बहाया शायद उसके आंसू सूख चूके थे| बच्चा गोद में चुपचाप सोया था| मैं घरवालो से आँखे बचाकर अपने आँसू पोंछ रही थी फिर कहने लगी "दीदी किसी के सामने रोते नहीं हैं और मर्दों के सामने तो बिलकुल नहीं|"

वो इतना कुछ झेल चुकी है कि अब उसे फ़र्क़ नहीं पड़ता वो शांत सी बैठी रहती है| किसी मूक दर्शक कि तरह.. उसका शरीर 35-36 कि उमर में 60 का सा बूढा हो गया है| वो कमर सीधी कर नहीं चल पाती| पोषक आहार खाए उसे महीने हो गए हैं और इधर-उधर का दूध पी पीकर उनके बच्चा भी बिमार रहने लगा है वो करीब दस महीने का है पर उसे कभी सेरेलेक या पोषक तत्वों वाला भोजन नसीब ना हुआ| यही कारण है कि वो कुपोषित है और बैठ भी नहीं पाता| 

मैं हैरान हूँ कि वो हर चीज का ज्ञान रखती हैं, स्वाभीमानी हैं समझदार हैं.. मैंने रूपये देने चाहे तो रूपये नहीं लिये कहती हैं कि कोई नौकरी दे दो जहाँ दिन भर के काम का पैसा मिल जाए| फ़्री में पैसा इन्हें बैंक से भी नहीं चाहिए| इनकी ज़िद है बच्चे को अपने साथ रखने की तो इसमें क्या ग़लत है जब मज़दूरों के लिए सरकार करेच कि सुविधा दे सकता है तो पढ़ी लिखी लडकियो के लिए क्यूँ नहीं?

महीने वाली नौकरी का भरोसा नहीं पता नहीं आख़िर में सैलैरी दें या नहीं अपने से भी कई अधिक योग्य लड़की को मैं किस नौकरी पर रखूँ| मैं परेशान थी साथ ही सोच रही थी कि इनके बैंक वालो से एक बार मिलूँ| इन्होंने हिम्मत नहीं हारी इसीलिए जब तब ये अपने बैंक जाकर वहाँ झाड़ू पौछा कर आती है| कहती है कि बस मुझे कुछ भी ख़र्चे के लायक दे दो| कोई मार्केटिंग कि नौकरी दे दो| जिससे मैं और मेरे बच्चे का पेट पलता रहें पर बच्चे को अपने साथ ही रखूँगी हालात साफ़ है कि जिस बच्चे को लोग अपनाने से ही इनकार करते हैं उसकी देखभाल क्या ख़ाक करेंगे?

आप ही बताइये इन सब में बच्चे का क्या क़सूर? माना कि माँ दुनियादारी की सताई हुई है| उसकी कमर उसके अपनो नें ही तोड़ी है| समाज नें उसे समझने से इनकार कर दिया है| समझ लोग नहीं पाए और पागल उसे बना दिया| आप बताए कौन पागल है..वो जो इन्हें देखते ही खिड़की दरवाज़े बन्द कर लेते हैं| एक नन्हें से बच्चे ओर कमज़ोर शरीर वाली एक औरत कितनी घातक नजर आती हैं कुछ लोगों को किस तरह यें माँ-बेटा समय निकाल रहें हैं भगवान ही जानता हैं| 

क्या कहती है लता
कहती है ओटों रिक्शा वाले तो फिर भी अच्छे हैं पर ये लम्बी-लम्बी गाड़ियों वाले बड़े घर के जहाँ तक हो पाता हैं पीछा करते हैं| जब तब मौक़ा मिलता है छूने की कोशिश करते हैं| 

कौन है लता की हालत का जिम्मेदार
इनकी इस हालत की अगर कुछ हद तक ये ज़िम्मेवार हैं तो समाज कि भी पूरी भागीदारी हैं| क़ायदे क़ानून में बँधे हम लोग चलती फिरती क़ानून की किताब से हम लोग संवेदनहीन हम लोग जो किसी भी अच्छे भले को पागल बना दें| इनकी कहानी मेरे सामने आई और मुझे ही इन्होंने हर बात लिख करके बताई| मैंने इनसे इनकी आपबीती और सबको बताने कि इजाज़त माँगी तो बोली ज़रूर बताना और ये भी कहना कि जो हाल मेरा हुआ वो किसी ओर का कोई ना करे|

समय का कोई भरोसा नही कब राजा को रंक बना दे
किसी के साथ भगवान कितना क्रूर हो सकता है, ये सवाल इन्हें देख कर बार-बार मन में आता हैं| आख़िर किसने की इनकी ये हालत इनकी माने तो कोई एक व्यक्ति नहीं जब जिसे मौक़ा मिला इनके भोलेपन का फ़ायदा उठाया| ये कैसे चूक गई, कैसे नहीं सँभल पाई ये तो भगवान ही जानता है पर अभी ये दयनीय दशा में हैं| 

समाजसेवियों से विशेष आग्रह
मेरा आगरा जैसे बड़े शहर के रोजाना अखबारो मे फोटो छपने वाले समाजसेवियों से आग्रह है कि इस दलित महिला की भी मद्दद को हाथ बढ़ाए| उसका स्वाभिमान आज भी समाजसेवियों को जबरदस्त तमाचा है| गुनहगार ख़ाली वो ही नहीं जिसने गुनाह किया| सब कुछ देख कर आँखे फेर लेना भी गुनाह है| किसी बीमार बच्चे को उसकी हारी टूटी हुई माँ के साथ मरने को छोड देना भी एक गुनाह हैं|मैं नहीं जानती मैं इनके लिए क्या कर पाऊँगी पर इतना जानती हूँ कि एक दिन सब सही हो जाएगा| इनकी ज़िन्दगी..इनका स्वास्थ्य..इनका वैवाहिक जीवन..और इनका बीमार कुपोषित बच्चा भी| 

आप लोगों से अनुरोध है कि जिस भी भगवान को आप लोग मानते हो| उनसे इनके जीवन के सुखी होने कि प्रार्थना किजिए और फिर कभी कोई पगलिया दिखाई दे तो दुतकारने कि बजाए एक बार सोच लीजिएगा| कहीं ऐसा तो नहीं हम लोग ही जाने अनजाने में उस पगलिया के गुनहगार हो| 

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