आजादी के 70 वर्ष बाद भी कायम है कान्वेंट स्कूलो मे तानाशाही
कहते है कि नए भारत को तैयार करने मे बच्चो की अहम भूमिका होती है क्योकि बच्चे ही देश का आगे चल कर भविष्य तय करते है| सरकार भी बच्चो की शिक्षा के लिए विभिन योजनाओ मे शिक्षा को महत्व देती है यही कारण है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत भारत का भविष्य आज स्कूलो मे पढ़ रहा है| जिसमे दलित व दुर्बल वर्ग के बच्चो को 25 प्रतिशत निजी कान्वेंट स्कूल मे दाखिला देने का अधिकार दिया| सरकार ने अधिकार तो दे दिया क्या लगता है कि ये अधिकार आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को इतनी आसानी से मिल जाएगा| पिछले वर्ष लखनऊ के सिटी मांटेसरी स्कूल तो सुप्रीम कोर्ट तक गया था| देश के प्रताष्ठित अधिवक्ता अभिषेक मनु सिधवी ने ये दलील पेश कि गरीब बच्चो के घरो के पास अन्य स्कूल भी है इन्हे उन स्कूलो मे शिफ्ट किया जाए जिसे सिरे से न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल ने नकारते हुए फटकार लगाई कि बच्चे फुटबॉल नहीं है| ये हालत उत्तर प्रदेश कि राजधानी लखनऊ के ही नहीं बल्कि लगभग सभी शहरो के है|
अगर हम ताजनगरी आगरा की बात करे तो यहाँ हालत और भी बुरे है| यहाँ 70 वर्ष बाद भी अंग्रेज़ रूपी तानाशाह कान्वेंट स्कूल संचालको से बच्चो को शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए आर०टी०ई० एक्टिविस्ट धनवान गुप्ता ने खून को स्याही बनाकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द को भी पत्र भेजा जा चुका है| इस पर भी न तो बेसिक शिक्षा विभाग न ही निजी कान्वेंट स्कूलो के कान पर जूं रेंगी है| आगरा का होली पब्लिक स्कूल भी लखनऊ के सिटी मांटेसरी स्कूल जैसा रवैया अपनाए हुए है| दिलीप माहौर की माँ रेखा कुमारी व अनुष्का की माँ तुलसी देवी डीएम से लेकर सीएम तक अपने बच्चो को सरकार द्वारा आवंटित स्कूल मे शिक्षा के अधिकार के तहत दाखिला करने के लिए गुहार लगा चुकी है| दलित व दुर्बल वर्ग को शिक्षा का अधिकार का दुख व उनकी वेदना जिला प्रशासन को भी नहीं झझौरती है... ये ही हमारे स्वतन्त्रता की विफलता है| शिक्षा का अधिकार के लिए आज भी हजारो बच्चे अपने एडमिशन का इंतजार कर रहे है|