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Exclusive : 5 फुट की फ़ैक्टरी मे काम करता है प्रदेश का सबसे बड़ा शिल्पकार, दो जून की रोटी के पड़े है लाले... देखे विडियो

सनडे स्पेशल स्टोरी : विमल कुमार, आगरा 
आगरा : पत्थर को तराश कर मूरत को बेहतरील रूप देने में रामदास का कोई मुकाबला नही है| रामदास की प्रदेश के सबसे अच्छे शिल्पकारों में गिनती भी है फिर भी रामदास के रोटी के लाले पड़े है| शिल्पकार की हालत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि सरकार से पुरस्कार प्राप्त प्रदेश के सबसे मंझे हुए शिल्पियों में शुमार पत्थर के कारीगर आज अपनी कला को अपने बच्चों तक में नहि बांटना चाहता| आगरा के शास्त्रीपुरम बी ब्लॉक में रहने वाले 33 गज के मकान में रामदास का रहना और कारखाना खोलकर काम करने के बाद दो जून की रोटी जुटाना भी उसके लिए मुश्किल हो रहा है।

अगले माह फरवरी में प्रसिद्ध शिल्प मेला ताजमहोत्सव शुरू हो रहा है| देश विदेश से यहां शिल्पी आएंगे और अपने फैन को बेचेंगे पर शिल्पियों को हर साल प्लेटफार्म देने वाला आगरा आज भी जैसे चिराग तले अंधेरा की कहावत को चरितार्थ करता है| यहां का एक मुख्य कार्य पत्थर का भी है| यहां पत्थर को तराश कर तरह-तरह के मूरत बनाने वाले लोग आज भी दो जून की रोटी को जिंदगी से लड़ रहे हैं| आगरा के शास्त्रीपुरम में ईडब्लूएस के 30 गज के मकान में रहने वाले| रामदास विश्व कर्मा पिछले तीस सालों से पत्थर का काम करते हैं इसके लिए 2012 में उन्हें यूपी सरकार द्वारा लखनऊ में पुरस्कृत भी किया जा चुका है| पूरे यूपी में बड़े साइज की हाथी, शेर आदि जालीदार पत्थर की कलाकृति बनाने वाले आगरा के इकलौते कारीगर हैं| इनके अलावा अब शहर में मात्र 250 से 300 लोग ही इस काम मे लगे हैं| उनमें से ज्यादातर लोग छोटी मूर्तियो की कटिंग ही कर पाते हैं| 

रामदास आज भी पूरा दिन मेहनत कर मात्र 300 से 400 रुपये ही कमा पाते है| उनमें भी दो बच्चों की पढ़ाई का खर्च उनके सर पर रहता है| अद्भुत हस्त शिल्पकला के माहिर रामदास अपने बाद अपना काम परिवार में किसी को विरासत में नही देना चाहते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी जिंदगी तो बिता ली पर वो नही चाहते कि उनके बच्चे भी गरीबी के अभाव में जिए, इसके साथ ही उनका पूरा परिवार चाहता है कि अब घर मे कोई और यह काम न करे बल्कि आमदनी का साधन कोई और होने के बाद रामदास से भी यह काम छुड़वाया जाए क्योंकि दिनभर पत्थर तराशने के दौरान सांस के रास्ते पत्थर का चूरा शरीर मे घुसता है| जिससे तमाम श्वास की बीमारियां हो जाती हैं|


रामदास बताते हैं कि सबसे छोटा साइज के एक दिन में दो पीस बन पाते हैं| जिसमे मुश्किल से 250 से 300 रुपये मिल जाते है| उससे बड़ा साइज का हाथी बनाने पर उन्हें 2500 रुपये मिलते हैं| उससे बड़ा बनाने में 5 दिन लग जाते हैं| सबसे बड़ा साइज बनाने में महीना भर लग जाता है और उसमें सामान मिलाकर 25 हजार मिलते हैं| जिसमे करीब 5 हजार रुपये लागत भी है| पत्थर से दम घुटने की बीमारी के बाद इस तरह काम करने पर कुछ फायदा न होने के कारण वो क्षुब्ध है| उनका कहना है कि मुझे तो रोज मजदूरी मिलती है पर और कारीगरों को वो भी नही मिलती है सरकार से उन्हें आस है कि उनके जैसे लोगो की कुछ मदद की जाए।

क्या कहते है रामदास विश्व कर्मा 
पत्थर का काम करते हुए मुझे 30 साल हो गये मैं तो जिन्दगी भर मजदूरी कर रहा हूं मैं नहीं चाहता मेरे बच्चे भी मजदूर बनें किसी के पैसा हो तो सब मुमकिन है पैसा नही है तो कुछ मुमकिन नही है बच्चों का पेट पालना है तो मजदूरी तो करनी ही पड़ेगी न अपने काम में मुझे सही मजूदरी नही मिलती है अगर इसकी डायरेक्ट मेन्यु फेक्चिरिंग हो तो ज्यादा फायदा है उसके लिये मेरे पास पैसे नही है|

क्या कहती है रामदास विश्व कर्मा की पत्नी ममता विश्व कर्मा
इस काम से बहुत नुकसान है और बहुत बीमारी भी लग चुकी है इस लिए इस काम में हम अपने बच्चों को नही लाना चाहते है इनाम मिल चुकी है पर उसका कोई फायदा नही है| 

क्या कहती है रामदास विश्व कर्मा की बेटी प्रिया विश्व कर्मा 
इस काम से नुकसान है और पापा को भी है हम लोग चाहते है कि इस काम से हम दूर रहें इसलिए हमें ये काम नही करना पड़ कर कुछ करना है और पापा को भी इस काम से दूर करना है| हमें सरकार से मदद मिले हम कुछ करना चाहते है कुछ बनना चाहते है|