नारी हूँ हारी नहीं
जाने क्यों झूठ "
बोल पाती नहीं....
रंग अनेकों बदल "
पाती नहीं...
बंदिशें जमाने की "
निभा पाती नहीं...
बन गुड़िया मोंम की "
सह पाती नहीं...
जुल्मों-सितम होते "
देख पाती नहीं...
तूफानों के दरिया "
से घबराती नहीं...
रिवाजों की बेड़ियां "
पहन पाती नहीं...
मर्यादाओं को"
लांघ पाती नहीं...
पी के गरल तिरस्कार का"
मौन रह पाती नहीं...
घबरा कर तम से "
लक्ष्य से भटक पाती नही...
बेबस मजलूम "
बन पाती नहीं...
नारी हूं वक्त से"
हार पाती नहीं...