आगरा : प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी चिम्मन लाल ने गांधीवादी अस्त्र ' सत्याग्रह ' को त्यागने का निश्चय किया है। वह इसकी विधिवत घोषणा करेंगे। चिम्मन लाल का कहना है कि आजादी के बाद के सत्तर सालों में यह अस्त्र मौथरा ( धार विहीन) पड गया है। विदेशी सरकार इससे घबराती थी । फलस्वरूप उसकी अफसरशाही स्वतंत्रता सत्याग्रहियों और उनके द्वारा उठाये गये मुद्दों को अपने पद दायित्वों का निर्वाहन करने के लिये गंभीरता से लेते थे। इसी प्रकार इंग्लैंड की संसद भी हमेशा भारतीय जनमानस खासकर गांधी जी के सत्याग्रह को लेकर हमेशा गंभीर रही और वहां के हाऊस आफ कामंस ही नहीं हाऊस आफ लार्डस तक में भारत के वायसराय और बाद में गर्वनर जर्नरल के काम काज को गंभीरता से लिया गया। जबकि आजाद भारत की संसदीय व्यवस्था में व्यवस्थापिका के सदन जन आंदोलनों और जनता से जुडे मुद्दों पर संवेदना शून्य है। सरकारों पर नियंत्रण और अफसरशाही की मनमानी रोकने में नाकारा साबित होने के रोज नये रिकार्ड बना रहे हैं।
चिम्ममन लाल ने कहा कि विश्लेशण करने पर उन्हे खुद अच्छा नहीं लगता कि उन्हें किन्तु यह स्वीकार करने में उन्हें कोयी संकोच नहीं है कि अंग्रेज सत्ता के हम गुलाम जरूर थे किन्तु शासक के रूप में वह ' आम जनता ' की भलाई के कामों के प्रति अधिक संवेदनशील थे। जनसामान्य की अर्जियां निपटाने में अब जैसा पक्षपात और भ्रष्टाचार नहीं था। केवल राजनेताओं और उनकी अपनी समझ में आने वाले सरकार विरोधियों के प्रति ही उनकी सख्ती रहती थी। जबकि आज की स्थिति एक दम उल्टी है। राजनेताओं को सरकार जनधन से उपकृत कर रही है और अफसरशाही आम जनता को जमकर तरह तरह से उत्पीडित करने में लगी है। व्यवस्थापिका के सदन ( संसद और विधान मंडल) और उनके सदस्य आम जनता से जुडे जरूरी मुद्दों के प्रति भी संवेदना शून्य है। नशा विरोधी प्रयासों और शराब बन्दी जैसे गांधीवादी आंदोलन जैसे अहम मुद्दों तक को अफसरशाही ने राजस्व( सरकार की आमदनी) से जोड कर रख दिया है।
चिम्मन लाल ने कहा कि वह पहले व्यक्ति नहीं हैं जिसने सत्याग्रह अस्त्र को त्यागा हो , वास्तव में इसकी शुरूआत उनके आदर्श आचार्य बिनोबा भावे ने की थी। बिनोवा जी ने जब सत्याग्रह त्यागा था तब उनसे पूर्व प्रधान मंत्री स्व अटल बिहारी बाजपीयी और स्व चन्द्र शोखर जैसे अपने समय के दिग्गज नेताओं ने संपर्क कर इसकी वजह जानने का प्रयास किया था। जिस पर आचार्यजी ने कहा आजादी के बाद के सत्याग्रह के माध्यम से किये गये तमाम छोटे बडे प्रयासों के असफल रहने की जानकारी उन्हे देते हुए कहा था जब सरकारे और राजनेता सत्याग्रह के प्रति अपनी संवेदनशीलताये खो चुकी हे तब और सत्याग्रहियों को पुलिस से जमकर पिटवाया जाता है तथा मुकदमों में फंसा दिया जाता है फिर इस माध्यम का इस्तेमाल क्यो किया जाये।
चिम्मन लाल ने कहा कि यह सही है कि वह सत्याग्रह जरूर त्याग रहे है किन्तु सत्य कहने और उसके रास्ते पर चलना जारी रखेंगे। मसलन वह शराब की बुराई को जरूर कहते रहेंगे किन्तु किसी से यह नहीं कहेंगे कि भाई आप शराब पीना नहीं छाडो। मेरी बात को अगर खुद मान ले तो मुझे खुशी होगी। इस प्रकार मुझे अपनी बात को कहने का तो भरपूर अवसर रहेगा किन्तु सत्यग्रह में शामिल होना मात्र पुलिस उत्पीडन का माध्यम नहीं बन सकेगा। उन्होंने कहा कि आज के राजनीतिज्ञ स्वीकार करें या नहीं किन्तु हकीकत यही है कि जब से सरकारों ने गांधीवाद और आचार्य बिनोबा भावे की सार्वोदय अवधारणा को अप्रासंगिक बनाया है 'सरकार और जनटकराव की घटनाये बढी है'। देश के अनेक प्रांतों में खून खराबे की आये दिन घटनाये हो रही हैं और पुलिस के नाकाम रहने से पैरामिलिट्री बल तक तैनात हैं।