कुछ वर्षों पहले गली-मोहल्लों में कॉमिक्स की दुकानों पर बच्चों की भीड़ लग जाती थी। हर कोई अपने-अपने पसंदीदा सुपर हीरो की कहानी पढ़ने को उतावला नजर आता था, लेकिन मोबाइल के इस युग में गेम का ग्लेमर बच्चों पर इस कदर हावी हुआ है कि कॉमिक्स के सुपर हीरो गुम हो गए हैं। गर्मियों की छुट्टी में जब स्कूल बंद होते थे तो बच्चे कामिक्स की दुकानों का रुख कर लेते थे। खाली वक्त में कामिक्स उनका मनोरंजन करती थीं।
चाचा चौधरी, साबू जैसे पात्र उनके हीरो हुआ करते थे। ये कहानियां शिक्षाप्रद होती थीं, लेकिन अब बच्चों के हीरो चाचा चौधरी नहीं, वीडियो गेम के एनीमेशन काटरून हो गए हैं, जिनमें वे खोए रहते हैं। इससे किताबों को पढ़ने के प्रति उनकी रुचि खत्म सी होती जा रही है। परीक्षा खत्म होने के बाद आजकल बच्चे मोबाइल पर गेम खेलने में ज्यादा समय बिता रहे हैं। वीडियो गेम के आने से बच्चों में किताब पढ़ने की रुचि कम हुई है। कक्षा में बच्चे किताब पढ़ने पर जरा सी देर में ऊब जाते हैं। हमें बच्चों को शिक्षाप्रद किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
ये थे सुपर हीरो
चाचा चौधरी, साबू, पिंकी, बिल्लू, नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव, डोगा, बांकेलाल, भोकाल, परमाणु, तौसी आदि बच्चों के सुपर हीरो होते थे। इनकी कॉमिक्स पढ़ने के लिए बच्चे बेकरार रहते थे। आगरा के हरीपर्वत चौराहा स्थित पुस्तक विक्रेता विनोद कुमार ने बताया कि चाचा चौधरी, पिंकी, बिल्लू जैसे पात्रों की कॉमिक्स आज भी आ रही हैं। इन कॉमिक्स को देखकर माता-पिता अपने बच्चों को पात्रों के बारे में बताते हैं और इनकी पढ़ने के लिए खरीदते हैं। जब कामिक्स का शुरूआती दौर था, तब कस्बे के बाजार में इसकी दर्जनों दुकानें हुआ करती थीं। घंटे के हिसाब से पैसे लिए जाते थे। एक कामिक्स का किराया पचास पैसे से लेकर एक रुपए निर्धारित था। बच्चों के कॉमिक्स क्लब होते थे।
कॉमिक्स को छोड़कर स्मार्ट फोन अपनाने के कई नुकसान हैं। कम उम्र में ही स्मार्ट फोन का ज्यादा प्रयोग करने से बच्चों की आंखों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही हर समय स्मार्ट फोन साथ रखने से बच्चे समाज से दूर हो जाते हैं, क्योंकि उनका पूरा ध्यान स्मार्ट फोन पर ही रहता है। बच्चों के लिए मित्र बनाना भी बहुत जरूरी है। कॉमिक्स के लेन-देन से मित्रता भी बढ़ती थी, लेकिन स्मार्ट फोन में बच्चों को खेलकूद से दूर रहने को मजबूर कर दिया।