रोशन मिश्रा, चंदौली, वाराणसी
आज हम खुली आँखों से सुनहरे हिन्दुस्तान की अलौकिक छवि को देखते हैं। हम कभी हिमालय की ऊंचाई को देख कर प्रफुल्लित हो उठते हैं तो कभी पूर्वोत्तर में फैली हुयी प्रकृति की सुंदरता को देख कर हृदय आत्मसमर्पण करने लगता है परन्तु क्या हमने कभी सोचा है कि आजादी से पूर्व हमारे भीतर की उड़ान इतनी सरलता से गतिमान हो सकते थे? प्रश्न गंभीर एवं चुनौतीपूर्ण है।
भारत में रजवाड़ो एवं दूसरे देशी रियासतों के विलय पर एक नज़र
जब देश आजाद हुआ तब उसके सामने बहुत भारी चुनौती थी। 500 से अधिक रियासतों का भारत में विलय करना सबसे महत्वपूर्ण काम था। एक तरफ 15अगस्त 1947 को देश आजाद होने के बावजूद दो टुकड़े में बँट गया। तब यहां 565 रियासतों को भारत में शामिल करना और विद्रोही शासकों को शांतिप्रिय तरीके से निपटाना जटिल कार्य था। तब भारत के लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल जो कि तत्कालीन गृह मंत्री भी थे, उन्होने भारतीय भू-भाग के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था और उनके इस राष्ट्रीय समृद्धि के कार्य में पं जवाहर लाल नेहरू एवं राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने भी अभूतपूर्व भूमिका का निर्वाह किया था। पटेल ने देश के एकीकरण के लिए रियासतों के विलय की नीति अपनायी। उस समय सबसे दिक्कत यह रही कि माउंटबेटन प्लान के तहत राजा और रजवाड़ो को अपनी मर्जी से विलय में शामिल होना था। पटेल जी ने रियासतों को सतर्क करते हुए कहा कि रियासतों को तीन विषयों, 'सुरक्षा', 'विदेश ',और 'संचार व्यवस्था ' के आधार पर भारतीय संघ में शामिल किया जाएगा।
उधर, कश्मीर के राजा हरि सिंह नेअलग रहने का निर्णय लिया। हैदराबाद, जुनागढ और भोपाल के रियासत स्वतंत्र रुप से शासन करने के लिए तैयार थे। पं श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक देश में दो विधान -दो निशान के सख्त विरोधी थे। कई रियासतों ने भारत सरकार में विलय होने के लिए 15 अगस्त के पहले ही प्रस्ताव -पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया। जूनागढ के नवाब मोहम्मद महावत खान ने जूनागढ को भारत में विलय करने से इंकार कर दिया तथा 5 सितम्बर 1947 को पाकिस्तान के साथ विलय -पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया। पटेल को जब इस घटना की जानकारी हुयी तो उन्होने नवाब को अपना निर्णय बदलने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। जूनागढ की जनता ने नवाब के खिलाफ विद्रोह कर दिया। नवाब स्थिति को देखते हुए विरोध के बीच में पाकिस्तान भाग गया और इस तरह जूनागढ का भारत में विलय हो गया।
13 सितम्बर 1948 को हैदराबाद के निजाम की सेना
और भारत में जंग शुरू हो गया तथा 18 सितम्बर को निजाम की सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया तथा इस तरह हैदराबाद का भी भारत में विलय हो गया। अगर बात भोपाल के रियासत की करें तो, मार्च 1948 में नवाब हमीदुल्लाह ने भोपाल को स्वतंत्र रखने की घोषणा की तथा मई 1948 में एक मंत्रिमंडल घोषित कर दिया। भोपाल की जनता ने भी इसका जबरदस्त विरोध कर दिया जिसके परिणाम स्वरूप 29 जनवरी 1949 में नवाब ने मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर दिया। विरोध के बीच नवाब ने 30 अप्रैल 1949 को विलय- पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया। भारत के दबाव के आगे 1जून 1949 को भोपाल रियासत स्वतंत्र भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया। इस तरह हम देखते हैं कि तमाम देशी रियासतों का भारत में विलय होने लगा।
याद रहे कि आजादी के बाद गोवा को भारत का अंग बनने में 14साल लग गया। जब भारत को आजादी मिली तब गोव ,दमन और दीव पर पुर्तगालियों का अधिकार था। जैसा कि हम जानते हैं कि साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद को भारत ने कभी भी हृदय से स्वीकार नही किया था। भारत ने बातचीत की बहुत कोशिश की मगर पुर्तगालियों ने इसे ठुकरा दिया था। 19 दिसम्बर 1961को भारतीय सेना ने "आपरेशन विजय " के माध्यम से गोवा, दमन एवं दीव को पुर्तगालियों के शासन से मुक्त करा दिया। 30 मई 1987 को गोवा को राज्य का दर्जा मिला जबकि दमन और दीव केन्द्र शासित प्रदेश बने रहे।
उधर पुंदुचेरी करीब 300 साल फ्रांसीसी उपनिवेशवाद में रहा, आजादी के बाद यहाँ भी भारतीय विलय की मांग तेजी से उठने लगी। अतः नवम्बर 1954 में इसे फ्रांस ने भारत को सौंप दिया। दूसरी तरफ सिक्किम ने 1975 में भारत से विलय होने के लिए अनुरोध किया तथा अप्रैल 1975 में भारतीय सेना ने गंगटोक को अपने कब्जे में ले लिया तथा वहाँ जनमत के बाद 98 प्रतिशत भारतीय पक्ष में विचार होने की वजह से मई 1975 में सिक्किम को भारत का 22 वां राज्य घोषित किया गया। इस प्रकार समय -समय पर जम्मू और कश्मीर को भी भारत में पूर्ण रूपेण विलय करने की मांग विभिन्न माध्यमों से उठता रहा है। 5 अगस्त 2019 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा जम्मू और कश्मीर के मसले पर धारा 370 और 335 पर लिया गया निर्णय ऐतिहासिक प्रतीत होता है। हमें यह बात अच्छी तरह से समझना होगा कि भारतीय अखंडता एवं एकीकरण का राह एक दिन में हासिल नहीं हुआ।