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अगर आपका बच्चा भी खेलता है PUBG तो ये पढ़े...

अंकित सिंह, वाराणसी


प्लेयर-अंनौन्स बेटल ग्राउंड्स गेम को पबजी के नाम से भी जाना जाता है, इस वीडियो गेम को सबसे पहले पीसी, आईओएस और एक्सबॉक्स संस्करण (वर्जन) के लिए लांच किया गया था और उसके बाद, फोन के बहुत कम पॉवर वाले प्लेटफार्म से शुरुआत की गई। 'पबजी गेम' में कई तरह के हाईटेक फीचर दिए गए हैं| इस ऑनलाइन गेम में अट्रैक्टिव ग्राफिक्स, पॉवरफुल साउंड और मोशन सेंसरिंग टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल किया गया है| यह एक मिशन गेम है| इस समय बच्चों और युवाओं में ‘पबजी गेम’ काफी छाया हुआ है| दिन-रात इस गेम को खेल-खेलकर बच्चों और युवाओं को इसकी लत लग चुकी है| गूगल प्लेस्टोर से अब तक इस गेम को 50 मिलियन से भी ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है| इस आंकड़े से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि स्मार्टफ़ोन यूजर्स के बीच इसकी कितनी लोकप्रियता है|

ऐसे खेला जाता है PUBG:
पैराशूट के जरिए 100 प्लेयर्स को एक आईलैंड पर उतारा जाता है| जहां प्लेयर्स को बंदूकें ढूंढनी पड़ती है और दुश्मनों को मारना होता है | आखिर में जो बचता है वो विनर होता है| 4 लोग ग्रुप बनाकर भी खेल सकते हैं, जो आखिर तक पहुंच गए तो सभी विनर कहलाते हैं| इस गेम को डाउनलोड करने के लिए 2 जीबी स्पेस होना जरूरी है क्योंकि गेम फोन का काफी स्पेस लेता है| 

WHO ने इसे अब बीमारी कहा
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसी साल गेम खेलने की लत को मानसिक रोग की श्रेणी में शामिल किया है। इसे गेमिंग डिसऑर्डर नाम दिया गया है। शट क्लीनिक के अनुसार टेक एडिक्शन वालों में 60 फीसदी गेम्स खेलते हैंं। 20 फीसदी पोर्न साइट देखने वाले होते हैं। बाकी 20 फीसदी में सोशल मीडिया, वॉट्सएप आदि के मरीज आते हैं।

लत से निकालने पैरेंट्स को बदलना होगी आदत
पैरेंटिंग एक्सपर्ट अभिषेक पसारी के अनुसार बच्चे को जीवन के पहले 6 साल में प्यार की जरूरत होती है जो कि मां के प्यार से भी पूरी हो सकती है। दूसरे 6 सालों में प्यार और अनुशासन की जरूरत होती है। यह जिम्मेदारी माता-पिता दोनों को साथ में निभाना चाहिए। तीसरे 6 सालों में ‘डिसीप्लीन बट विथ लव” के कंसेप्ट को अपनाते हुए बच्चे की परवरिश करना चाहिए। इसमें माता-पिता को पीछे हटते हुए अपने स्थान पर एक ऐसे मैच्युअर मेंटर बच्चे के साथ रखना होता है जो उसे सही-गलत समझा सके क्योंकि इस उम्र में बच्चा माता-पिता से नहीं बल्कि दोस्त से बातें साझा करता है। ऐसे में मैंटर को दोस्त की भूमिका निभानी होती है।

बच्चों की पसंद के विषय पर करें चर्चा
यह पैरेंट्स के लिए भी चिंता का विषय है कि वह बच्चे के उन भावों को नहीं समझ सके जो इस तरह के खेल के कारण बच्चे के शारीरिक और मानसिक बर्ताव पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे थे। पैरेंटिंग एक्सपर्ट डॉ. अमित बंग कहते हैं कि इन गेम्स या साइड्स से आप बच्चे को दूर नहीं रख सकते लेकिन उन पर अनुशासित और तार्किक तरीके से अंकुश जरूर लगा सकते हैं।

अकेला महसूस न होने दें बच्चों को
इस तरह के गेम अधिकांशत: वे बच्चे खेलते हैं जो किन्हीं कारणों से खुद को अकेला महसूस करते हैं या किसी कारण से निराश हैं। ऐसे मामले एक-दूसरे को देखकर और भी बढ़ जाते हैं इसलिए अब बच्चों के लिए ज्यादा सतर्क होने की जरूरत है। मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. पवन राठी के अनुसार हानिकारक गेम्स खेलने के दौरान बच्चों के बर्ताव में नकारात्मक परिवर्तन आता है उस पर गौर करें। इसके लिए उनके दोस्त और टीचर्स से मुलाकात करें। पैरेंट्स बच्चों के मन से अपने लिए डर निकालें और उन्हें जीवन के उतार-चढ़ाव से रूबरू कराएं। बच्चों के शरीर पर ध्यान दें कि कहीं उन्होंने खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश तो नहीं की।

बच्‍चों को हिंसक बना रहा है गेम
मनोचिकित्‍सकों का मानना है कि इस तरह की गेम बच्‍चों को हिंसक बना रहा हैं। इनका कॉन्‍सेप्‍ट ही सबको खत्‍म करना अपनी बादशाहत कायम करने का है। जिसका असर बच्‍चों के व्‍यवहार में साफ नजर आ रहा है। बाल मनोवै‍ज्ञानिक डॉ गी‍तांजलि शर्मा कहती हैं, इस तरह की गेम्‍स की एडिक्‍शन हो जाने के बाद बच्‍चों में अपने सिबलिंग्‍स और दोस्‍तों के प्रति भी वैमनस्‍य देखा जाता है जो उनके व्‍यक्तित्‍व निर्माण को बाधित करता है।