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साहो: यह फ़िल्म समीक्षा लायक भी नही

रवि कुमार, पटना 


मुंबई : हम हिन्दुस्तानीयो को बचपन से एक पाठ स्कूल में पढाया जाता है, किसी का नक़ल मत करो, एग्जाम में चोरी मत करो कुछ अपने से लिखो बुकलेट के ऊपर भी यही लिखा रहता है, विद्यार्थी यथा संभव अपने शब्दों में उत्तर दे| लेकिन ऐसा होता बहुत काम है. तो हम बात कर रहे है. फिल्मो को कुछ माजरा ऐसा ही है. इस देश में हर साल एक दो ऐसे फिल्म बनाये जाते है. जिसको क्रिटिक्स अपने ऑफिस और घर के भड़ास निकल सके, ऐसा नही है| यह चलन शादियों से चली आ रही है, जाहे तो आप इतिहास उठा कर देख ले बॉलीवुड सिर्फ अपने झूठी कहानियों और मसाल गानों के चलते जाना जाता है| होना तो नही चाहिए पर यही होते आ रहा है| क्यों की जनता यहाँ की मुर्ख है, इनको तो कुछ पता है नही फिल्मो के बारे में, स्कूल में मास्टर जी बोलते रहते थे. कुछ भी करो मगर अपने दिमाग की करो लोगो के काम को देख कर नक़ल मत किया करो | 

यह बात हम हिन्दुस्तानियो के जेहन में कहा से उतरे. एक और बात है बचपन में जब दीपावली आती थी| गाँव शहर और कस्बो में एक दो लोग डिंग हाकने वाले मिल जाते है | जो अक्सर यही बोलते मिलते है, इ जो रॉकेट ह ना इ बहुत ऊपर तक जाता है | एक ठो 500 रुपया का है. उस्सी में से कोई उससे ले लेता था. लेकिन जब घर पर उसको छोड़ा जाता तो वह नागिन छाप पड़ाका से भी काम आवाज करता, यही हाल कुछ हुआ है साहो के साथ 350 350 करोड़ बोल बोल कर लोगो के दिमाग में डाल दिया गया की, मतलब कोई एक्टर 2 साल तक किसी फिल्म को दे रहा है| वह फिल्म तो कमाल का होगा निकला क्या, यह तो कहने की बात ही नहीं | इसी तरह पिछले साल एक फिल्म आया था| लोगो के जुबान पर वह नाम अभी भी याद होगा मगर गाली की तरह फिल्म था, थाग्स ऑफ़ हिन्दुस्तान मेरे बॉस को जब कोई काम पसंद नही आता है| तब वह बोलते है की थाग्स ऑफ़ हिंदुस्तान देख कर आये हो गा | हिन्दी फिल्मो का यह जो चलन है| वह कब ख़त्म होगा राम जाने | 

जब फिल्म में प्रभास का एंट्री होता है तो दर्शक तालियों से पूरा सिनेमा हॉल गूंज उठता है. लेकिन जैसे ही इन्तेर्वाल होता है| लोगो के मुँह से अपशब्द आने लगते है. फिल्म ख़त्म होते होते कितनो ने तो सिनेमा ओनर को ही तार दिया | यह फिल्म देखते समय मुझे डी आर्ट ऑफ़ किल्लिंग की याद आ रही थी, जिसमे कैसे तो आपसी समूह के दुसरे के खून के पयासी है. उसके बाद मुझे थे गन मैंन की याद आ रही थी जिसमे एक अंडर कवर एजेंट कैसे किसी के गिरोह में जा कर उन्ही का सफाय करता है | कुछ ऐसे ही कमजोर पाटकथा किया गया है. साथ में अवास्तविक एक्शन,बेवजह गाना का एक ठूसा हुआ, नमूना है साहो सिर्फ बाहुबली के फेम से काम नही बनता | अगर 350 करोड़ को किसी दान पुन: में प्रोडूसर दान दे के नाम कमा लेता लेकिन इनको तो नक़ल करने में मजा आता है | आना भी चाहिए क्यों की इन जैसे नागरिको को यही है नसीब में देखते रहिये और अपने को कोश्ते रहिये |