ग़ज़ल
आ गये जिंदगी में खुदा की तरह।
अब न जाओ किसी नाखुदा की तरह।
बात कुछ भी न थी तुम खफा हो गये।
छोड़ कर क्यों गये बद्दुआ की तरह।
जिंदगी आपके बिन नहीं कुछ सनम।
कट रही आज जैसे सजा की तरह।
दूर जबसे गये हो अजी क्या कहें।
हो गयी जिंदगी हाशिया की तरह।
बन ग़ज़ल तुम रहे जिंदगी में मेरी।
और हम बन गये काफिया की तरह।
✍ मनोज यादव
कानपुर, उ0 प्र0
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