आज हर जुबान पर हिमा दास की चर्चा है और सोशल मीडिया में लोग उनकी तारीफों के पुल बांध रहे हैं, वहीं कई लोग ऐसे भी हैं कि जो उनके बारे जानने के लिए गूगल का सहारा ले रहे हैं | हिमा दास के गोल्ड मेडल जीतने के बाद उनको और खासकर उनकी जाति को लेकर गूगल सर्च में काफी उछाल देखा गया | गूगल ट्रेंड के आंकड़े बताते हैं कि लोगों ने सबसे ज्यादा हीमा दास की जाति पता करने की कोशिश की | इनमें सबसे ज्यादा संख्या असम के लोगों की थी, जिसके बाद पड़ोसी अरुणाचल प्रदेश का नंबर आता है |
फिनलैंड में हुई IAAF वर्ल्ड अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 400 मीटर रेस में गोल्ड मेडल जीतने वाली हिमा दास के लिए यह 'पुराने सपनों के साकार' होने जैसा था | असम के ढिंग जिले की रहने वाली हिमा के पिता एक गरीब किसान है। बचपन से आजतक उनका जीवन संघर्षपूर्ण रहा, बिना किसी सुविधाओं के विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए हिमा ने ये मुकाम हासिल की । विश्व चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला धावक रहीं |
हालांकि हीमा दास को लेकर लोगों की इस उत्सुकता में एक स्याह पहलू भी उभर कर सामने आया | देश में कई लोग जब हीमा के कारनामे का जश्न मना रहे थे, उसी दौरान कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें हिमा की जाति पता लगाने की पड़ी थी | यहां गौर करने वाली बात यह भी रही कि गूगल पर जैसे ही हिमा टाइप करते हैं, तो तुरंत ही 'हिमा दास की जाति' का ऑप्शन ऊपर दिखने लगता है |
ऐसा पहली दफा नहीं हुआ, 2016 ओलिम्पिक दौरान भी पीवी सिंधू की जाति तलाशी जा रही थी। यह हमारे समाज की मानसिकता और उसमें घुली जाति के जहर को दर्शाता है। जाति व्यवस्था का विवाह और धार्मिक कर्मकांडो में आज भी बोलबाला है। मंदिरोंमें आय दिन दलितों के साथ भेदभाव की खबरें आते रहते है,देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ जगन्नाथ मंदिर के पंडो ने अभद्रता की उन्हें गर्वगृह तक जाने से रोका गया। ऐसी घटनाएं ना केवल शर्मनाक अपितु देश और समाज के माथे पर कलंक है।