रोशन मिश्रा, चंदौली
किसी महान कवि की इस पंक्ति को समस्त भारतीयों की आन, बान और शान पी वी सिंधु ने स्विटजरलैण्ड के बार्सिल में जापानी शटलर नोजोमी ओकुहारा को विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप के फाइनल में बुरी तरह धूल चटाकर अमर कर दिया। जिस तरीके से सिंधु ने इस सफलता को हासिल किया क्या यह गर्व का विषय नहीं है? क्या हम भारतीयों को इस खबर को बासी समझ कर अगले दिन भूल जाना चाहिए? भारतीय गौरव कही जाने वाली सिंधु ने मात्र 8 साल की उम्र में बैडमिंटन का रैकेट थामा था। विश्व बैडमिंटन चैम्पियनशिप के मुकाबले में विश्व की तीसरी वरीयता प्राप्त नाजोमी ओकुहारा को मात्र ३८ मिनट में ही बुरी तरह से हरा दिया। ऐसे एक तरफा फाईनल की उम्मीद किसी ने नहीं किया था। ओकुहारा ने मात्र 2 गेम में ही घुटने टेक दिया। बहुत कम लोगों को पता है कि 2 साल पहले इसी खेल में ओकुहारा से मिली हार का हिसाब भी चुकता कर लिया। हम भारतीय केवल उम्मीद के सहारे नहीं रह सकते ।
हमें और सिंधु की जरूरत है और इस काम को सिर्फ गिनती भर के लोगों के सहारे नही पुरा किया जा सकता है इसके लिए हर मां -बाप को अपने बच्चों में छिपी हुयी प्रतिभा को पहचान कर उसे बढ़ावा देना होगा तभी हम स्वयं से हकीकत में न्याय कर पायेंगे। सिंधु की इस सफलता पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने बधाई संदेश भी भेजा । अब भारतीयों की उम्मीदें इस महान शटलर से अगले साल होने वाले टोकियो ओलम्पिक्स में गोल्ड मेडल जीतने के लिए बढ गई है।