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जानिए... जयपुर के शिला माता की ऐतिहासिक कहानी

राम बाबू शर्मा, जयपुर


जयपुर : दोस्तों, जयपुर में एक लोकगीत काफी प्रसिद्ध है जो कि ये है '' सांगानेर को सांगो बाबो जैपुर को हनुमान, आमेर की शिला देवी लायो राजो मान, माता ने दियो मानसिंह कू या फरमान... । ये गीत आज भी राजा मानसिंह की याद दिलाता है । शिला माता को जयुपर रियासत की कुल देवी माना जाता है । शिला माता को जयपुर और ढूढाड की आराध्य देवी माना जाता है । आमेर की शिलादेवी के बारे में कुछ ऐसी मान्यताएं प्रसिद्ध है जिसके बारे में आज हम आपको बताने की कोशिश कर रहे हैं । 

शिला माता मंदिर के पुजारी के द्वारा बताई गई जानकारी के अनुसार, इस मूर्ति को राजा मानसिंह जसोल बंगाल से साल 1604 ईस्वी में लेकर आए थे । वर्तमान समय में जसोल बांग्लादेश में है । केदार राजा को पराजित करने में असफल हो रहे थे तो उस समय राजा मानसिंह ने माता से अपनी विजय के लिए मन्नत मांगी जिसके बाद देवी ने राजा केदार के चंगुल से अपने आपको मुक्त कराने की मांग की और माता ने मानसिंह को युद्ध जितने में भी सहायता की और राजा मानसिंह ने देवी की प्रतिमा को राजा केदार से मुक्त करवा ही दिया और मूर्ति को आमेर लाकर स्थापित कर दिया । 

आपको जानकर हैरानी होगी कि आमेर में जो माता की मूर्ति स्थापित है उसकी गर्दन टेडी है इसको लेकर एक लोककथा प्रचलित है । बताया जाता है की माता स्वयं-भू राजा मानसिंह से बातचीत करती थी । यहाँ राजा देवी को रोजाना एक नर की बलि देता था । लेकिन एक बार राजा मानसिंह ने माता से कहा कि वह अब और नरबलि नहीं दे सकता है इसके बदले में वो माता को पशुबलि देगा लेकिन माता ने उसकी इस बलि को स्वीकार नहीं किया और उसके बाद माता ने अपना मुंह फेर लिया जो कि आज तक टेढा ही है लेकिन अब पशुबलि को भी बंद कर दिया गया है । इस मूर्ति को वर्तमान गर्भगृह में प्रतिष्ठित करवाया गया है, जो उत्तराभिमुखी है । यह मूर्ति काले चमकीले पत्थर की बनी है । शिला देवी की यह मूर्ति महिषासुर मर्दिनी के रूप में विश्वभर में प्रतिष्ठित है । मूर्ति सदैव वस्त्रों और लाल गुलाब के फूलों से सजी रहती है ।