रोशन मिश्रा, चंदौली
तरक्की और पतन प्रकृति का अद्भुत नियम है। विकास के गर्भ में विनाश की संरचना छिपी होती है। आजकल ऐसा ही कुछ कारनामा इन दिनों दुनिया भर में चल रहा है। हम यहां विश्व के दो महा शक्तिशाली देश अमेरिका और तत्कालिक परिवेश में विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान बना चुके चीन के बीच चल रहे कारोबारी द्वन्द के बारे में चर्चा करेंगे। इन दिनों अमेरिकी एवं चीनी अर्थव्यवस्था में आपसी मतभेद देखा जा सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आयातित 300 मिलियन के सामानों पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगा दिया है जिसकी वजह से चीन की मुद्रा युआन, डॉलर के मुकाबले 7 से नीचे आ गया है। ऐसा 2008 के बाद पहली बार हुआ है।
इधर, अमेरिका ने चीन के ऊपर मुद्रा से छेड़छाड़ का आरोप लगाया है। दूसरी तरफ चीन की केन्द्रीय बैंक पीपुल्स बैंक आफ चाइना का कहना है कि चीन की मुद्रा में गिरावट का मुख्य कारण अमेरिका द्वारा चीन के सामानो पर अत्यधिक आयात शुल्क लगाया जाना है जिसके लिए डोनाल्ड ट्रंप की घातक नीतियां जिम्मेदार हैं। अमेरिकी अर्थशास्त्री मानते हैं कि युआन की गिरती कीमत के कारण चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक मतभेद व्यापक रूप ग्रहण कर सकते हैं। वे इस बात को भी मानते हैं अर्थव्यवस्था की दृष्टिकोण से भविष्य में इसके नकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकता है।
पूरी दुनिया के अर्थशास्त्री जानते हैं कि जहाँ तक युआन का सवाल है, तो उसमें चीन के सरकार के इशारे पर केन्द्रीय बैंक द्वारा मनचाहा बदलाव हो सकता है उसके लिए मुद्रा की मांग अथवा बाजार से उसे बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा। कुल मिलाकर यह समस्त विश्व की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर नही है । अभी अमेरिका एवं चाइना का व्यापारिक मतभेद ख़त्म नहीं हुआ है कि एशियाई देशों में विकसित अर्थव्यवस्था में शामिल जापान एवं दक्षिण कोरिया में भी तनाव देखा गया है। जापान ने दक्षिण कोरिया को व्हाइट लिस्ट से बाहर कर दिया है जिसका अर्थ जापान से दक्षिण कोरिया को होने वाला निर्यात अब इतना आसान नहीं होगा। अगर गहराई से देखा जाए तो जापान के इस कदम पर बहुत सारे दक्षिण कोरियाई कम्पनियों को आर्थिक संकट से गुजरना पड़ सकता है।
दक्षिण कोरिया ने कहा है कि जापान ने असंगत कदम उठाया है। यघपि देखा जाए तो इसके तार दूसरे विश्व युद्ध से जुड़े हैं। एक समय कोरिया जापान का उपनिवेश था। उस समय वहां की कुछ कंपनियों ने कोरियाई नागरिकों को अपने यहाँ जबरदस्ती काम करने के लिए मजबूर किया था। कोरियाई नागरिकों के मामले में वहाँ की अदालत में मुक़दमा चला। कुछ दिन पहले कोर्ट ने अपने फैसले में जापान की कई कंपनियों को पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए कहा है, जिसकी वजह से जापानी कंपनियां नाराज़ हो गई। जापान ने दक्षिण कोरिया के कोर्ट के फैसले पर अपनी नाराजगी जताई है। शिंजो आबे ने कोरिया के इस कदम को अंतर्राष्ट्रीय संधि का उल्लंघन बताया है। दक्षिण कोरिया की टाप 2 कंपनी सैमसंग और एस के हाईनिक्स डिस्प्ले स्क्रीन और मेमोरी कार्ड की दुनिया के सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल हैं परन्तु इसके लिए अनिवार्य कच्चे माल की आपूर्ति जापान द्वारा की जाती है ।
अतः विश्व पटल पर वर्तमान हालात जिस तरह से देखने को मिल रहे हैं उससे आने वाले समय में प्रतिस्पर्धा की जंग में आगे निकलने की होड़ में ये अहम रखने वाले देश इतना आगे ना निकल जाए कि जो कुछ भी पास है वो कहीं बहुत पीछे ना छूट जाए।