मिल जाए कहीं बचपन वापस
खूब धूम धड़ाका काटेंगे
चिलड्रेन बैंक की नोटों से
हम आईसक्रीस ले,चाटेंगे….
पापा के एक रूपईया से
हम चाँद तलक हो आएँगे
मम्मी के चुप करने पर भी
हम हो हल्ला खूब मचाएंगे…
मिल जाए कहीं बचपन वापस
बाबा के कंधो पर घूमू….
सावन के मेघ मल्हारो पर,
बारिश की बूंदो सा झूमू….
आँख मिचौली माँ से करके
मैं भरी दुपहरी फिर निकलू,
पापा के आँख दिखाने पर
माँ के आंचल मे छिपलू….
मिल जाए कहीं बचपन वापस
साईकिल को कैची से सीखू
जब अपनी बात न मानी जाए
सारी दुनिया से फिर रुठू….
एक अर्जी चाँद को भी भेजू
की वो मेरे मामा कैसे हैं…..
एकबार फिर पेन से मूंछ बनाऊ
सबसे पूँछे हम कैसे हैं…..
मिल जाए कहीं बचपन वापस
ले चलू मैं उन सबको गाँव गली
करु मसखरी उन लोगों से
जो भूल गए सब हँसी ठिठोली
जब बजे भांगड़ा ढोल कहीं
जम कर झूमें नाचे खेले
भाईदूज की रोली करने पर…
पैसे न पाने से बहना मचले
मिल जाए कहीं बचपन वापस
उसको फिर न जाने दूँ…..
जो गालो से खेले कूची पूची
उसकी शिकायत पापा से कर दूँ…
ये जो रत्ती रत्ती खुशियाँ है
इनको जेबो में भर लूँ….
वो कंपट टाफी चूरन खड़िया
सबको फिर से मैं चख लूँ….
दीपांकर तिवारी “उन्नाव”